दलजीत अमी
राजीव शर्मा की निर्देशित फिल्म 'नाबर' को बेहतरीन पंजाबी फिल्म का नैशनल अवार्ड मिला है. निजी टेलीविजन के दौर में राजीव इस बाजार में सबसे अनुभवी पेशेवर पंजाबी है. राजीव शर्मा ने विभिन्न चैनलों के लिए उच्च पदों पर उत्कृष्ट काम किया है. उसके काम में मात्र कारोबार की मांग के बनिस्बत अधिक विविधता है जिसकी वजह से उसके साथ की मांग पंजाबी, हिंदी और विदेशी चैनल में भी बराबर बनी रही है. टेलिविज़न, साहित्य, फिल्म, संगीत और राजनीति की सूक्ष्म समझ जहाँ उसकी प्रतिभा को कुशाग्र करती वही बतौर मनुष्य उसे और संवेदनशील और अन्वेषण में परिपक्व करती है. गुज़रे बीस बरसों से मैं उसकी यात्रा का हमराह रहा हूँ. हॉस्टल के एक ही कमरे में रहते सादगी में लिप्त उसकी जिज्ञासाएं दिलकश लगती थी. महानगर में निवास और देश विदेशों के भ्रमण के बावजूद वही दिलकशी बरकरार है.
हमारी मुलाकात ११९२ में हुई. हमारी सांझेदारी मुख्यत हमारी सांझी देहाती संस्कृति और कुछ रुचियों की समानताओं से संपन्न हुई. इसी दौरान रूचियाँ-अभिरुचियाँ बदलीं.परिणामस्वरूप हमारा संवाद के विषय और बढे. राजीव अधिकतर मुंबई रहता है पर जब भी पंजाब आता, कुछ ना कुछ पंजाबी में अवश्य करता. रंगमंच में उसका प्रवेश जगराओं पढ़ते हुए मुल्लापुर से हुआ. वह अपने साथियों के साथ मिल कर लघु फिल्में बनाता. ' कलाण' और 'आतूखोजी' इसी श्रृंखला की अभी तक की आखिरी फिल्में हैं. इस श्रृंखला का आरम्भ साक्षरता और तर्कशील अभियान से हुआ था. उस समय राजीव पंजाब यूनिवर्सिटी के थिएटर विभाग में विद्यार्थी था. विज्ञान का विद्यार्थी, ज्ञानी की पढाई करने के बाद पंजाबी साहित्य पढ़ते हुए स्नातक तक पढाई करके चंडीगढ़ पहुंचा था. वहाँ उसने अपनी पहली दस्तावेजी फिल्म 'अपना पाश' बनाई थी जो मेरे लिए भी फिल्म निर्माण की तरफ बढ़ने का पहला कदम थी.
उन दिनों पंजाबी फिल्मों का स्तर निंदनीय था. राजीव ने कई फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया. हमें वे फिल्में नापसंद थीं, इस दुर्गम राह में अनेकों बार राजीव को हताशा मिली, आलोचना हुई. एक लंबा वक्त टेलिविज़न में गुज़ारने के बाद राजीव की इच्छा फीचर फिल्म बनाने की हुई. इच्छा शायद हमेशा से रही पर इस दौरान ऐसा अवसर ना बना. ऐसे सबब जुगत से बनते हैं पर राजीव को फिल्म उद्योग का यह सर्वगुणकारी हुनर नहीं आता. उसने सहजता से ग्रामीण सादगी और महानगरीय ज्ञान को संजो लिया है. इसी दौरान राजीव ने 'नाबर' की कहानी लिख ली और कई लोगों को सुनाई. पंजाबी फिल्म जगत के वरिष्ठ लोगों ने कहानी की सराहना की पर पैसों का निवेश करने के लिए कोई राज़ी ना हुआ. 'चैनल पंजाब' के साथ राजीव का अनुभव अच्छा रहा था. जब चैनल पंजाब के जसवीर सिंह ने फिल्म निर्माण में हाथ आजमाना शुरू किया तो पुराने साथी राजीव को साथ लेकर 'नाबर' बनाने का फैसला किया.
पिता-पुत्र के संबंध की जटिलता और बारीकियों को खोलते राजीव पंजाबियों के विदेश जाने की सनक के बारे में बात करता है. पिता-पुत्र के रिश्ते की विमुखता और अलगाव एक चुप्पे व्यक्ति के 'नाबर' हो जाने का ऐलान है. राजीव के अंदर का पंजाबी एक ही सांस में बाबा फरीद, बाबु रजब अली से लेकर चंडी की वार पढ़ और गा सकता है. 'नाबर' में इन सभी का समावेश हाज़िर है. राजीव दर्दमंद और धैर्यवान पंजाबी है. वह पंजाब रहते हुए पंजाबी फिल्में बनाना और दिखाना चाहता है. रोज़गार के मसले जब उसे दूर ले जाते हैं तो मैं उसको पुकारता हूँ. 'नाबर' की सफलता और सम्मान मिलने पर मेरी यह उम्मीद के सशक्त होगी. संभव है अब राजीव के पंजाब में ही रहते हुए फिल्में बनाने और दिखाने के बेहतर अवसर उपलब्ध हों.
(Monika Kumar has translated this article from Punjabi to Hindi.)
a concise intro to the man and his work. write a longer article also, please.
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